Wednesday, 9 September 2015

प्राणायाम -२




प्राणायाम क्या है ?
'प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम'''श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम''
ऋषि मुणियो ने प्राण के उपर गहरा शोध किया और पाया की वह प्राण ही है जिससे समस्त जीव एवं समस्त विश्व संचालित हो रहा है .बिना प्राण के जीव मृतात्मा के सामान है .प्राण का प्रथम अर्थ जीवात्मा के रूप में है जो मानव शरीर में ह्रदय स्थान पर अवस्थित माना गया है .दूसरा है  आयाम जिसका अर्थ है रोकना या विस्तार करना.

हम जब श्वास  लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पाँच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पाँच जगह स्थिर हो जाती  हैं। वे स्थान है (1)व्यान, (2)समान, (3)अपान, (4)उदान और (5)प्राण।

इस प्रकार प्राण की शोध ने ऋषि मुणियो को एक नया ही आयाम दिया और अपने ज्ञान विज्ञान की खोज को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने प्राणायाम पर अनेक अन्वेषण किये एवं गूढ़  ज्ञान प्राप्त किया जिसके बल पर वे सैकड़ो वर्ष  जीवित रहने लगे व हिमालय में तपस्या किये.प्राण एक ऐसा तत्व है जिसके द्वारा मन संचालित होता है एवं जिससे शरीर का भरण पोषण होता है .यदि शरीर के किसी भी भाग में प्राण की गति सही तरीके से न हुई या कोई भी दिक्कत हुई तो उस अंग को अवश्य प्रभावित करता है जिससे रोग की उत्पत्ति होती है .

प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। पूरक में स्वास भीतर की ओर जाती है एवं जिस अनुपात से हम लेते है उसमे एक ले होना आवश्यक है .अन्दर गयी हुई स्वास को पूरक कहते है .रेचक अन्दर ली हुई स्वास को नियंत्रित तरीके से छोड़ने की क्रिया है .स्वासो को लेते व छोड़ते वक़्त सामान मात्र में स्वास लेना रोकना व छोड़ना है.

प्राणायाम के अनेको प्रकार है परन्तु प्रमुख है 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई, 4.भ्रामरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ......इनमे भी मुख्य है नाड़ीशोधन ,कपालभाती
बरगद व पीपल के पेड़ में प्राणों  का रहस्य : कछुए की साँस लेने और छोड़ने की गति इनसानों से कहीं अधिक दीर्घ है। व्हेल मछली की उम्र का राज भी यही है। बड़ और पीपल के वृक्ष की आयु का राज भी यही है। वायु को योग में प्राण कहते हैं।


प्राचीन ऋषि वायु के इस रहस्य को समझते थे तभी तो वे कुंभक लगाकर हिमालय की गुफा में वर्षों तक बैठे रहते थे। यदि देखा जाए तो सावधानी पूर्वक धीरे –धीरे स्वास लेने व छोड़ने और बाद में रोकने का भी अभ्यास किया जाए तो इसका प्रभाव हमारे आज्ञाचक्र पर पड़ता  है जिनसे एकाग्रता बहुत बढ़ जाती है .इडा पिंगला एवं शुशुमना यह तीन नाडिया  है जो प्राणायाम के द्वारा निरंतर शुद्धि होती चली जाती है इसतरह प्राणों का संचार सम्पूर्ण शरीर में वायु के रूप में फैलने लगती है जिसकारण जहा प्राणों की कमी होती है उस-उस जगह  प्राण भरने लगते है एवं हमारा शरीर पहले से कही अधिक सुंदर एवं स्वस्थ होने लगता है.जिसके परिणाम स्वरुप हमारी नाडिया शुद्ध होती चली जाती है.
अब हम प्राणायाम के कुछ मुख्य प्रकार की बाते करते है जिसे व्यक्ति को नियमित रूप से अवश्य करनी ही चाहिए.


१ -भस्त्रिका प्राणायाम-

इस  प्राणायाम में तीव्र वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर लेते है और अशुद्ध को बहार  निकालते है जिससे एक आवाज सी निकलती  है जो धौकनी जैसी होती है.यह प्राणायाम अति महत्वपूर्ण है इससे शरीरगत  जितने भी toxins इकट्ठा हुए है एवं जो जहर अल्प मात्र में हमारे शारीर में मौजूद होती है उससे यह प्राणायाम तेजी से निकालती  है .

विधि- आप सुखपूर्वक किसी भी आसन पर बैठ जाए एवं गर्दन ,रीड की हड्डी को सीधा करते हुए शारीर  और मन को स्थिर एवं शांत करते हुए आखे बंद करके तेज गति से श्वासों को अंदर और तेज गति से बाहर निकाले .इस प्राणायाम से नाडी स्थल पर दबाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप हमारे चक्र परिष्कृत होते चले जाते है .नए नए में आप इसे  धीरे धीरे ५ मिनट तक करे फिर बढ़ाते बढ़ाते आप १०-१५ या उससे ज्यादा अपनी  सामर्थ्यानुसार बढ़ाये.जब अभ्यास बढ़ जाए तो आप १ सेकंड में २ बार लेने और छोड़ने की क्रिया करे. इस प्राणायाम को उच्च रक्तचाप ,ह्रदय रोगी,दम्मा,टीबी ,या ह्रदय रोगी एवं गर्भवती महिलाये न करे.


२=कपालभाती –षट्कर्म में इस प्राणायाम का पंचम स्थान माना गया है .षट्कर्म के अंतर्गत धौती,बस्ती ,नेति,नौली ,कपालभाती एवं छठा त्राटक आता है .कपालभाती एवं त्राटक को इनमे अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है जो हमें योग से मिलाप करवाता है .किन्तु गृहस्थो के लिए सुलभ तो भस्त्रिका ,कपालभाती एवं अनुलोम विलोम ही होगी.त्राटक एक पूर्ण विज्ञानं है जिसपर पूर्ण अनुभव के साथ प्रैक्टिकल  भी आपलोगों के मध्य  भविष्य में अवश्य  रखूँगा.जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है कपाल अर्थात मस्तिस्क का अग्र भाग एवं भाति अर्थात ज्योति इसकारण इस प्राणायाम को संजीवनी प्राणायाम भी कहते है .

विधि- आप आसन में सीधे बैठ जाए अब श्वासों को बाहर छोड़ने की क्रिया करे श्वासों को बाहर  छोड़ते समय आपका पेट अन्दर की ओर जायेगा .इसतरह करने पर स्वास स्वतः ही अन्दर आ जाती है जिसके कारन आपको लेने की आवश्यकता नही पड़ती.हलाकि भस्त्रिका एवं कपालभाती में ज्यादा अंतर नही है क्युकी भस्त्रिका में श्वास लेना और छोड़ना तेजी से करते है किन्तु कपालभाती में केवल हम श्वासों को  छोड़ने पर ही ध्यान देते है . इस प्राणायाम के द्वारा हमारे चेहरे की झाइया एवं आखो के निचे काले धब्बे साफ़ होने लगते है .शरीर में अतिरिक्त वसा हटने लगती है एवं हमारे मन के बुरे विचारों को दूर करती है .इसे भी धीरे धीरे ५ मिनट से लेकर १५ मिनट तक अभ्यास बढ़ाये आप इसे सुबह शाम भी कर सकते है .इसके अभ्यास से खोपड़ी ,स्वास प्रणाली और नासिका को शुद्ध करता है एवं कफ रोग को समूल दूर करता है .फेफड़े में अधिक मात्रा में प्राणवायु जाने लगते है जिससे समस्त शरीर में प्राणवायु सही तरीके से संचालित होने लग जाती है .




३ –अनुलोम विलोम /नाड़ी शोधन प्राणायाम-
वायु१०प्रकारकीहोतीहैप्राण,अपान,व्यान,उदान,सामान,नाग,कूर्म,कृकल,देवदत्त एवं धनञ्जय.जब बात प्राणायाम की हो रही है तो इन  वायु के रहने के स्थान भी बतला दे.प्राण का स्थान शिर में है ,उदान का कंठ ,नाभि,नासिका एवं गला है.व्यान का प्रधान स्थान ह्रदय है यही से इसका सभी अंगो में संचार होता है.समान का स्थान अन्याशय के समीप अमाशय से गुदा तक जाती है .अन्न को पाचन ,ग्रहण व फेकना इनका कार्य है .अपान का स्थान गुदा है .कंठ,मुत्रेंद्रिय ,जांघ एवं योनी के पास.वीर्य मासिक धर्म ,मलमूत्र,व गर्भ को बाहर निकालने  का कार्य इनका है .यह एक पूर्ण विज्ञान है जिसके विषय में बहुत बाते हो सकती है किन्तु वह विषय लम्बा हो जायेगा.हमें क्रियात्मक पक्च की ओर ध्यान देनी है .इस प्राणायाम के तो सैकड़ो लाभ है किन्तु जो मुख्य लाभ वोह है की यह 72कड़ोड़ 72लाख  10हजार  210 नाडियो की शुद्धि करता है .शुद्ध वायु हमारे सम्पूर्ण शारीर के रोम रोम में प्रसारित हो जाती है जिसके कारन कैसा भी रोग हो  नियमित अभ्यास एवं दिनचर्या से दूर की जा सकती है .मानव शरीर में मुख्य १७ नाडिया है जो है इडा,पिंगला,शुशुमना ,गांधारी,हस्तिजिह्वा,कुहू, सरस्वती ,पूषा ,शंखिनी,पयाश्विनी ,वारुनी,अलम्बुषा,विश्वोदारा,यशश्विनी,वज्र,चित्रा एवं ब्रह्म.इनमे भी मुख्य इडा,पिंगला एवं शुशुमना मुख्य है.अन्य नाडिया शुशुमना पर ही निर्भर रहती है यह तो एक गूढ़ विषय है  की किस प्रकार प्राणायाम एवं योग तंत्र द्वारा हम शुशुमना नाड़ी को जागृत करे.हा किन्तु इस नाड़ी के जाग्रति होते ही आपमें समाधी तक जाने की अवशता आ सकती है एवं ध्यान गहरा लगने लगेगा इसके साथ ही साथ आपको कुण्डलिनी के नियमित अभ्यास से द्विगुणित सफलता हासिल कर लेंगे.शिव संहिता के अनुसार इडा और पिंगला नाडिया गुदा के पास से होती हुई कुण्डलिनी के मेरुदंड को एक पाशर्व से पाशर्व तक लपेटे हुए शुशुमना से मिलकर त्रिवेणी बनाकर सर में होते हुई माथे के भ्रूमध्य स्थान में शुशुमना से होकर दो स्थानों में एक दाहिना और बाए भाग में जाकर समाप्त हो जाती है .इसकी कई विधिया है जिनमे मंत्र व तंत्र का सहयोग लेकर नाभि में दबाव बनाकर अग्नि बीज "रं" का जाप कर श्वासों  को साधते है .

विधि –आप किसी भी आसन में बैठ जाए अब रीढ़ की हड्डी सीधी एवं गर्दन सीधी रहे अब ॐ का उच्चारण ३ बार करके शांत हो जाए .ज्ञान मुद्रा में दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिने नाक को बंद करे एवं बाए नाक से स्वास ले पूरा ,दूसरी ऊँगली छोड़ दे .अब शेष बची ऊँगली से बायीं को बंद करे अब दूसरी ऊँगली से जितनी देर हो सके रुके फिर दाहिने से स्वास धीरे धीरे निकाल  दे.इसका अनुपात धीरे धीरे बढ़ाते जाना है प्रारंभ में ५ मिनट से बढाकर ३० मिनट तक या १ घंटे तक का भी अभ्यास किया जा सकता है .इसे आप सरल तरीके से करे या मन में गायत्री मंत्र का जाप करते हुए भी कर सकते है .श्वासों को लेते समय पूरा श्वास नाभि तक लेने की कोशिश करे.इससे प्राणवायु ज्यादा से ज्यादा अन्दर तक आ सकेगी एवं नाभि पर दबाव बन सकेगा जिससे आपकी कुण्डलिनी शक्ति पर भी दबाव बनना प्रारंभ हो जाएगी एवं यह शक्ति शीघ्रता से खुलना प्रारंभ करेगी.जबतक हमारे शरीर की नाडियो से मल का निष्कासन नही होगा तबतक कुण्डलिनी जाग्रति में संदेह ही  रहेगा.इस प्राणायाम के अभ्यास से नाभि के पास जो सूर्य चक्र है वह अधिक से अधिक उद्दीप्त होगा जिसके फलस्वरूप हमारे जीवन में एक क्रन्तिकारी परिवर्तन होना प्रारंभ हो जायेगा.इस प्राणायाम से मुझे बहुत लाभ मिला है कभी कभी तो ज्यादा देर तक अभ्यास करने एवं योग तांत्रिक प्रक्रिया करते करते ही अनेको प्रकार के गंध अनुभव होने लगते है और वह गंध तो कभी कभी किसी और को भी महसूस होने  लगती थी .यह कोई अस्चर्य की बात नही है ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है जरुरत है कार्य के प्रति लग्न और पूर्ण ज्ञान की .इस प्राणायाम के कई लाभ है एवं कई पहलु है जिस प्रकार कपालभाती के है .प्राणायाम को करने के कई तरीके है जिसे सामान्य गृहस्थ व्यक्ति भी कर सकते है .

योग एवं प्राणायाम से हमारी शारीरिक शुद्धि  होती है एवं अध्यात्म में जाने का रास्ता सरल होता है किन्तु यदि योग के साथ मंत्र एवं तंत्र का साहचर्य प्राप्त कर लिया  जाए तो परिणाम ४ गुना तीव्रता से प्राप्त होगी .आगे इस विषय पर अवश्य कुछ रहस्य उजागर करने  की कोशिश करूँगा.

अगले विषय में प्राणमय कोष एवं उनके विविध चेतन अवस्था के विषय में चर्चा करेंगे.


Sunday, 6 September 2015

योग एवं आसन -१



प्राणायाम पर बात करने से पहले योग पर थोड़ी प्रकाश डाल दी जाये.योग है क्या ?

 पातंजल योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृत्त निरोधः (1/2) अर्थात् चित्त की वृत्तियों का पर अंकुश लगाना ही योग है .




वैसे तो योग शब्द के दो अर्थ है  पहला है- जोड़  और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुँचना कठिन होगा.योग एक ऐसा विज्ञानं है जो हमें जीवन जीने का तरीका बताता है . इनके प्रमुख आठ अंग है  (1) यम (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायाम (5) प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान (8) समाधि। उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान।ह तीनो अंग अति महत्वपूर्ण है और इनका प्रयोग व्यापक रूप में निरोगी काया एवं अध्यात्म के उच्च शिखर  तक पहुचने में प्रयोग होती है.

१-आसनआसन हमें योग ,प्राणायाम एवं ध्यान के विषय में बतलाती है की यह  वह कड़ी है जो हमें  एक सूत्र में पिडोती है.बिना आसन के किसी में भी  सिद्धि हासिल नही की जा सकती है  .इसकारण महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में आसन का स्थान सर्वोपरि रखा है .यहा आसन से आशय है हमारे जो बैठने की अवस्था है वह किस प्रकार से है .जिसमे कई नाम है उनमे पद्मासन ,सिद्धासन,सुखासन प्रमुख है .योगिओ एवं सिद्ध जनों  के लिए तो सिद्धासन अति महत्वपूर्ण है एक ओर जहा आसन सिद्धि से हमें शारीरिक शक्ति प्राप्त होती  है वही दूसरी ओर हमें पारलौकिक शक्तिया भी स्वतः मिल जाती है .इस आसन के द्वारा नाडिया शुद्दिकरण होना प्रारंभ कर देती है एवं नविन रक्त का संचार होने लग जाती है    जिससे हमें इश्वर में मन लगने लगता है  एवं ध्यान की परिभाषा सार्थक होने लग जाती है .आसन के कई प्रकार है किन्तु आप को जिसमे भी सुविधा हो अप उसे प्रयोग कर सकते हिया .किन्तु सुखासन की बात ही निराली है जहा एक ओर यह पिरामिड नुमा आकृति बनती है जिससे उर्जा का केंद्रीकरण तीनो कोनो से होकर उर्जा एक जगह स्थिर होने लग जाती है .इसका अर्थ यह हुआ की साधारण आसन में जहा हमे केवल लाभ प्राप्ति साधारण रूप में होती है वही सिद्धासन के अभ्यास के द्वारा हम ३ गुने रफ़्तार से आगे बढ़ने लग जाते  है .वैसे तो आसन सिद्धि के लिए तीन घंटा छत्तीस मिनट एवं ज्यादा से ज्यादा चार घंटे अर्तालिस मिनट एवं साथ ही साथ  आसन पर बिना हिले डुले लगातार बैठने पर यह आसन सिद्ध हो जाती है .आसन सिद्ध होने पर ही ध्यान जप  एवं साधना में पूर्ण सफलता मिल सकती है .बहुधा लोग साधना जप तप करते तो है किन्तु इनके पीछे के विज्ञानं को भूल जाते है की यह विज्ञानं किस प्रकार कार्य करती है .जिससे उन्हें जाप में सफलता नही मिल पति है .जब हम आसन पर दृढ़ता के साथ साधना करने अपने आराध्य  की या जिस किसी के  भी  करने बैठते है तो सबसे पहले तो हमारा मन इधर उधर दौड़ता है फिर कुछ देर जाप के बाद अब मन के दौड़ने के कारण शरीर का हिलना डुलना प्रारंभ हो जाता है .अब इसका परिणाम यह हो रहा होता है की जो भी जाप हम करते है वह उर्जा का एक निरंतर प्रवाह नही बनपाता है जिसके कारण हमारी उर्जा उस घडी  बनती बिगडती चली जाती है .जब संगीत में सुर और ताल ही न हो तो भला वोह संगीत हमारे मन तक कैसे पहुच पायेगी ठीक उसी प्रकार इस विज्ञानं में यह क्रिया भी इसी  तरह कार्य करती है  .आसन के समय मेरुदंड,मस्तक व गर्दन सीधी हो ,दृष्टी बंद,ध्यान स्वासो पर अथवा भृकुटी पर अथवा कोई मंत्र जाप कर रहे हो तो उसपर रहे.आपका लक्च्य ज्यादा से ज्यादा समय तक आसन साधने का होना चाहिए .पैरो में दर्द होने लगे तो पैरो को खोलकर कुछ देर हिलाए उसके बाद फिर से आसन लगाये.वैसे तो योग शाश्त्र में अनेको आसन बतलाये गये है किन्तु सिद्ध योगिओ ,महापुरुषों के मध्य पद्मासन,सिद्धासन,स्वस्तिकासन व सुखासन ज्यादा प्रमुख रही है.आपको जिस भी आसन में आनंद आये और साधना करने का मन करे योगाभ्यास करने का मन करे आप उसी पर ध्यान दे.पद्मासन में कमल की जैसी आकृति भी बनती है इसलिए इसको कमलासन भी कहते है.घेरंड तथा शांडिल्य आदि ऋषियो ने इस आसन की बड़ी प्रशंशा की है.अब मै पद्मासन एवं सुखासन की विधि बता दूं.





१-पद्मासन-पहले आसन पर बैठ जाए अब धीरे से दाहिना पैर उठाकर धीरे से बाए पैर की जांघ पर रखिये और इसी तरह बाया पैर उठाकर दाहिने पैर की जांघ पर रखिये .घुटने जमीं से सटे रहे एवं दोनों हाथो को आप चाहे तो हथेली दोनों पैरो के घुटने पर सटा सकते है अथवा ज्ञान मुद्रा अथवा मृत्युंजय मुद्रा बनाकर प्रयोग कर सकते है .इस आसन में आप पैरो को अदल बदल भी  सकते है .इसके कई लाभ है .भगवान् शिव भी अपने योग स्वरुप में पद्मासन में ही ध्यानस्थ रहते है .इस आसन से शरीर दृढ एवं मन ध्यान पर लगने लगती है इससे सभी प्रकार के अभीष्ट सिद्ध होते है विशेषकर शारीरिक शुद्धि की बात की जाए तो इसमें ७२,००० नाडियो की शुद्धि हो जाती है .समाधी भी इसी आसन से जल्द लगती है .योगी को जिन ४ मुख्य आसन बताये गये है उनमे इनका भी स्थान है .यदि इस आसन को करते समय दातो की जड़ो में अपनी जिह्वा की नोक को लगाया जाए तो अनेक प्रकार की बीमारिया दूर होने लग जाती है .यह योग विद्या की  अति महत्वपूर्ण क्रिया है.इस आसन के कई उपभेद है जैसे अर्धपद्मासन,बद्ध पद्मासन किन्तु हमें मुख्य क्रिया पर ध्यान देने की आवश्यकता है .इस आसन पर योग व प्राणायम की क्रिया  की जाए तो क्या कहना .किसी भी अभ्यास को जब आप कर रहे है तो उसमे आपकी निरंतरता की नितांत आवश्यकता होती है एवं जबतक इसे ६ माह तक भस्त्रिका ,कपालभाती, अनिलोमविलोम  अथवा नाड़ी शोधन प्राणायाम के साथ न की जाए तो इसका द्विगुणित फल आप भला कैसे देख पाएंगे.इस आसन का सर्वाधिक असर हमारी नाभि के पीछे सूर्य चक्र पर पड़ता है जिससे अधिक मात्र में शक्ति का उत्सर्जन होता है .इस अभ्यास में ज्यादा तेजी नही करनी चाहिए नियमित अभ्यास से आप इसके परिणाम से निस्संदेह अस्चार्यचाकित रह जायेंगे.



२-सिद्धासन-पद्मासन के बाद सिद्धासन का दूसरा स्थान है.कुछ योगी इन्हें प्रथम स्थान पर रखते है .क्युकी उनकी दृष्टी  में ध्यान की दृष्टी से यह आसन सर्वोत्तम है .इस आसन के सिद्ध हो जाने पर बहुत सी सिद्धिया मिलने लग जाती है .

विधि-सर्वप्रथम दोनों पैर फैलाकर आसन पर बैठ जाए अब एक पैर को मोड़कर उसकी एडी को गुदा एवं अंडकोष के बिच सिवन पर मजबूती से लगाये .तलुआ जांघ से लगा रहे.अब दुसरे पैर को मोड़कर उसकी एडी लिंग के बिलकुल उपर हड्डी पर अच्छी तरह जमा दीजिये .तलुआ दुसरे पैर की जांघ से सटा रहे और पंजा जांघ व पिंडली के बिच दबा रहे.इस बात का भी ध्यान रखे की एडिया लिंग के ठीक उपर व निचे हड्डियों पर मजबूती से जमी रहे.इसके पश्चात ठोड़ी को कंठ के निचे मजबूती से लगाकर जीभ को तालू में लगा दे और पलकों और आखो को न हिलाए ध्यान भ्रूमध्य पर.इस आसन से शुशुमना नाडी जागृत होने लग जाती है व प्राण तत्त्व उधर्व गति को प्राप्त होने से वीर्य का प्रवाह उधर्व्गामी बन जाती  है .इस आसन को बहुत आसान न समझकर बल्कि इसे आराम आराम से समझकर करनी चाहिए.कुछ लोगो के अनुसार बाए पैर की एडी गुदा पर रखनी चाहिए गुदा पर रखने से मूलबंध दृढ होता है .आप चाहे तो इस प्रकार भी कर सकते है.पहले इसे ५ मिनट से आरम्भ करे फिर बढ़ाते बढ़ाते ३,४,५,६,...९ घंटे  इस प्रकार एक वर्ष में १२ घंटे के लगभग बैठने का अभ्यास शुरू कर सकते है  .इस प्रकार आप इस गति से बढ़ सकते है .इसके लाभ तो बहुत सारे है किन्तु कुछ मुख्य लाभ यह है की वीर्य रक्चा के लिए यह सर्वोत्तम आसन है .पेट के सभी विकारो को दूर कर ब्रह्मचर्य के साथ साथ नाड़ी शुद्दी होने लग जाती है जिससे कुण्डलिनी शक्ति का मार्ग अति सुगम  होने लगती है और शुशुमना जागृत  होती है .इससे योगिक सिद्धि बहुत जल्दी मिलने के आसार रहते है क्युकी यह शुषुप्त कुण्डलिनी को व नाडी शुद्धि बहुत जल्द करने लग जाती है .यह मुक्ति के दरवाजे खोल देती है .योगीजन साधारणतया सिद्धासन के द्वारा वीर्य को बचाकर मस्तिस्क तक ले जाते है जो उसे ओज व  कान्ति में परिवर्तित करती है .विशेषकर यह आसन योगिओ व साधको के लिए है गृहस्थ व्यक्ति को सुखासन का अभ्यास करना चाहिए.स्वप्नदोष के रोगी को इस आसन का अभ्यास अवश्य करना चाहिए.इस आसन से तो विद्यार्थी वर्गों के लिए तो अति उत्तम है इससे मेधा शक्ति में प्रखरता आती है एवं पढाई याद भी रहने लग जाती है .सिद्धासन के विषय में और क्या कहा जाए इससे तो उसके पाप नष्ट होते ही है उसके साथ ही साथ निर्बीज समाधी सिद्ध होती है .मूलबंध,उद्दियांबंध,जालंधर बंध अपने आप होने लगते है .

यह पिरामिड नुमा आकृति बनती है जिससे उर्जा का केंद्रीयकरण तीनो कोणों से होकर एक जगह स्थिर होने लग जाती है .इसका अर्थ यह हुआ की साधारण आसन में जहा हमे केवल लाभ प्राप्ति साधारण रूप में होती है वही सिद्धासन के अभ्यास के द्वारा हम ३ गुने रफ़्तार से आगे बढ़ने लगते है .

इसलिए कहा गया है की सिद्धासन जैसा आसन नही ,केवली कुम्भक के जैसा प्राणायाम नही खेचरी मुद्रा के जैसा अन्य मुद्रा नही और अनहद नाद जैसा कोई नाद नही.इस सम्बन्ध में भविष्य में कुछ और विशेष तथ्य देने की कोशिश करूँगा .