साधना एवं भक्ति यह दोनों ऐसे शब्द है जो प्रायः हम सभी को सुनने को
मिलती है .साधना का सोपान भक्ति की प्रथम चरण से होकर गुजरती है .क्युकी भक्ति अपने इष्ट अपने आराध्य के मिलन की तीव्र चाह में होती है .जब हम पूर्ण तल्लीनता
से समर्पण भाव से जब भक्ति करते है उनके नामो का उच्चारण करते है तो वे शब्द भी
मंत्र की तरह ही कार्य करते है .जैसे जैसे उनके शब्द रूपी ब्रह्मा में डूबता जाते है वैसे -वैसे
तल्लीनता एवं उनमे एकरस होने की अकुलाहट एक अलग आह्लादित कर देने वाली बेचैनी बढती ही जाती है .आज का हमारा विषय इष्ट से
सम्बंधित है .साधना की यात्रा में सर्वप्रथम व सर्वमान्य चरण इष्ट की आती है.इष्ट के
बिना साधना की कल्पना नही की जा सकती है .इष्ट हमारी वह आत्मिक शक्ति है जो हमें
अन्तःप्रेरणा एवं साधना में एक गुरु की भाति पथप्रदर्शक का कार्य करती है.उनकी कृपा उनकी
साधनात्मक शक्ति से बढ़कर कोई शक्ति नही .इस ब्लॉग को बनाने का उद्देश्य व्यक्ति को
साधना का मूलभूत ज्ञान एवं उसके विभिन्न आयामों से परिचित करवाना है एवं कुछ
दुर्लभ जानकारी अति सरल रूप में देने की कोशिश है जिससे एक नए साधक भी इन प्रक्रियाओ
को स्वयं कर सके एवं उनके लाभों को पूर्ण प्रामाणिकता के साथ देख सके .
साधना में इष्ट का स्थान सर्वोपरि है .एक साधक को सर्वप्रथम अपने इष्ट को साधना चाहिए जिससे की इष्ट की उर्जा से साधना में निरंतर
गति होता रहे .फिर उन्हें किसी भी पाखंडी व अल्पज्ञानी के पास भटकना नही
पड़ेगा
.
प्रश्न – इष्ट क्या है ?
उत्तर –इष्ट एक ऐसे परमतत्व है जो अनंत ब्रह्मांडीय उर्जा अपने में
समेटे हुए है .इष्ट – जैसा की शब्द से ही प्रतीत हो रहा है ..अभीष्ट की प्राप्ति में पूर्णत सहायक .परम लक्ष्य में सहायक हो..अब बात आती है की गृहस्थ जीवन की कुछ समस्याओ के निवारण हेतु आपको किसी विशेष स्वरुप का साधन करना पड़ जाता है जो की इष्ट से भिन्न स्वरुप है ..लेकिन इसकी प्रेरणा एवं सफलता के सूत्रधार आपके इष्ट ही होते है जो जन्म जन्मान्तर से चले आ रहे है आपके साथ..मानिए की आपके इष्ट “हनुमान” जी है ..लेकिन किसी विशेष परिस्तिथि/समस्या में आपको भैरव साधना करना पड़ा ..तो इसका मतलब यह नही हुआ की अब आपके इष्ट बदल गए..इष्ट आपके परम लक्ष्य के लिए हनुमान जी ही है ..लेकिन उनकी प्रेरणा से आपको भैरव साधना करनी पड़ी उस परिस्तिथि एवं समस्या के निवारण हेतु.. व्यापक स्तर पर देखे तो हनुमान जी अगर आपको प्रेरणा नहीं देते तो आप उस समस्या में उलझ कर अपने परम लक्ष्य से भटक जाते ..इष्ट का यही कर्तव्य है की इस मिथ्या जगत के जंजाल से आपको पार करवाना ..भैरव जी उस समयकाल के लिए आपके इष्ट हुए क्योंकि वह परिस्तिथि से निवारण आपका उस समय का अभीष्ट था.उनकी शक्ति का कोई तोड़ नही.उन्हें न ही कोई तंत्र शक्ति से बांधा जा सकता
है न ही किसी अस्त्र शाश्त्र से.इस ब्रह्माण्ड में एक ऐसे तत्त्व मौजूद है जिन्हें
“गॉड पार्टिकल “ के नाम से जाना जाता है .यह गॉड पार्टिकल सर्वत्र मौजूद है.जिस प्रकार प्रत्येक प्रदार्थ एक अत्यंत सुक्च्म कण से बना है जिसे हम एटम कहते है उसी प्रकार इष्ट भी हजार हजार अनुओ का सघन रूप है .इसके बारे और विस्तार से इसकी प्रकृति एवं इसके कार्य प्रणाली वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तृत करने की कोशिश करूँगा .जो आजतक रहस्य का विषय रही है वैज्ञानिको के बिच .
प्रश्न- वे हमें दिखाई किस प्रकार देंगे ?
उत्तर- इस तत्त्व को जानने व समझने के लिए हमें उस विकिरण से जुड़ना होगा जो हमें उस मार्ग तक पंहुचा कर हमारे सहायक सिद्ध हो . जिसे हम दो भागो में विभाजित करते है एक विज्ञानं और दूसरा पराविज्ञान हमें मूलतः पराविज्ञान की ही सहायता लेनी होगी. इसका कारण मात्र इतना है की इस विद्या को जानने के लिए जो उर्जा व किरण का
उत्सर्जन मंत्र शक्ति व तंत्र शक्ति के माध्यम से होती है वह साधारण विज्ञानं की
मदद से नही हो सकती है .उदाहरण एक वस्तु को गति दो और इतना गति दो की वोह गायब हो जाये.तो इसी प्रकार ही उनकी होने का आभास पवन की भाति है ही है .जो नही
दिखाई देकर भी है .
प्रश्न-इष्ट को किस प्रकार प्राप्त कर सकते है ?
उत्तर- इष्ट की प्राप्ति अति सरल है कोई भी व्यक्ति उन्हें साकार रूप में
प्राप्त कर सकते है किन्तु यह सरल उसके एक
निष्ठा भक्ति एवं समर्पण पर है .और इनसे सम्बंधित साधना का पूर्ण प्रमाणिक ढंग से
ज्ञात होना अति आवश्यक है .कोई भी व्यक्ति उस मंत्र की एक निश्चित संख्या पूर्ण
करने पर उस स्थिति को प्राप्त कर सकता है.एक बार दर्शन बिम्बात्मक हो या स्वप्न या
पूर्ण प्रत्याक्चिकरण ही माध्यम क्यों न हो .वोह इष्ट की उस असीम उर्जा से जुड़ जाता
है जो उसे हर वक्त प्राप्त होगी .इसे कोई भी जाती या वर्ण का व्यक्ति कर सकता है.यह तो अपने आप को
मनुष्य से देवत्व की ओर ले जाने की क्रिया है.आज समाज में अल्पज्ञानी व अति
बुद्धिजियो की संख्याओ के बढ़ते रहने के कारन लोग मतिभ्रम हो रहे है.जिस कारण उन्हें
साधना का वास्तविक चेहरा कुछ और ही दिखाई दे रही है .उन ऋषि मुणियो ने विशुद्ध ज्ञान एवं विशुद्ध तंत्र का साहचर्य प्राप्त किया था.जिसके कारण ही भारत सोने की चिड़िया कही
जाती थी .किन्तु काल के गाल ने धीरे धीरे वह ज्ञान रूपी सभ्यता लुप्त होती गयी और शेष रह पाया तो केवल दरिद्र एवं गरीबी . .कुछ लोग सही कहते है भारत एक ऐसा अमिर देश है
जहा गरीब लोग रहते है.वेदमंत्रो के उच्चारण
व पारंगत ऋषि ब्रह्म्रिशी जहा निवास करते
थे आज वही प्रदेश अपनी सभ्यताओ व संस्कृतियो एवं शक्तिओ को भूल सा गया है .
!!शिवोहम शिवोहम!!
No comments:
Post a Comment