Wednesday, 9 September 2015

प्राणायाम -२




प्राणायाम क्या है ?
'प्राणस्य आयाम: इत प्राणायाम'''श्वासप्रश्वासयो गतिविच्छेद: प्राणायाम''
ऋषि मुणियो ने प्राण के उपर गहरा शोध किया और पाया की वह प्राण ही है जिससे समस्त जीव एवं समस्त विश्व संचालित हो रहा है .बिना प्राण के जीव मृतात्मा के सामान है .प्राण का प्रथम अर्थ जीवात्मा के रूप में है जो मानव शरीर में ह्रदय स्थान पर अवस्थित माना गया है .दूसरा है  आयाम जिसका अर्थ है रोकना या विस्तार करना.

हम जब श्वास  लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पाँच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पाँच जगह स्थिर हो जाती  हैं। वे स्थान है (1)व्यान, (2)समान, (3)अपान, (4)उदान और (5)प्राण।

इस प्रकार प्राण की शोध ने ऋषि मुणियो को एक नया ही आयाम दिया और अपने ज्ञान विज्ञान की खोज को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने प्राणायाम पर अनेक अन्वेषण किये एवं गूढ़  ज्ञान प्राप्त किया जिसके बल पर वे सैकड़ो वर्ष  जीवित रहने लगे व हिमालय में तपस्या किये.प्राण एक ऐसा तत्व है जिसके द्वारा मन संचालित होता है एवं जिससे शरीर का भरण पोषण होता है .यदि शरीर के किसी भी भाग में प्राण की गति सही तरीके से न हुई या कोई भी दिक्कत हुई तो उस अंग को अवश्य प्रभावित करता है जिससे रोग की उत्पत्ति होती है .

प्राणायाम करते या श्वास लेते समय हम तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। अर्थात श्वास को लेना, रोकना और छोड़ना। पूरक में स्वास भीतर की ओर जाती है एवं जिस अनुपात से हम लेते है उसमे एक ले होना आवश्यक है .अन्दर गयी हुई स्वास को पूरक कहते है .रेचक अन्दर ली हुई स्वास को नियंत्रित तरीके से छोड़ने की क्रिया है .स्वासो को लेते व छोड़ते वक़्त सामान मात्र में स्वास लेना रोकना व छोड़ना है.

प्राणायाम के अनेको प्रकार है परन्तु प्रमुख है 1.नाड़ीशोधन, 2.भ्रस्त्रिका, 3.उज्जाई, 4.भ्रामरी, 5.कपालभाती, 6.केवली, 7.कुंभक, 8.दीर्घ, 9.शीतकारी, 10.शीतली, 11.मूर्छा, 12.सूर्यभेदन, 13.चंद्रभेदन, 14.प्रणव, 15.अग्निसार, 16.उद्गीथ......इनमे भी मुख्य है नाड़ीशोधन ,कपालभाती
बरगद व पीपल के पेड़ में प्राणों  का रहस्य : कछुए की साँस लेने और छोड़ने की गति इनसानों से कहीं अधिक दीर्घ है। व्हेल मछली की उम्र का राज भी यही है। बड़ और पीपल के वृक्ष की आयु का राज भी यही है। वायु को योग में प्राण कहते हैं।


प्राचीन ऋषि वायु के इस रहस्य को समझते थे तभी तो वे कुंभक लगाकर हिमालय की गुफा में वर्षों तक बैठे रहते थे। यदि देखा जाए तो सावधानी पूर्वक धीरे –धीरे स्वास लेने व छोड़ने और बाद में रोकने का भी अभ्यास किया जाए तो इसका प्रभाव हमारे आज्ञाचक्र पर पड़ता  है जिनसे एकाग्रता बहुत बढ़ जाती है .इडा पिंगला एवं शुशुमना यह तीन नाडिया  है जो प्राणायाम के द्वारा निरंतर शुद्धि होती चली जाती है इसतरह प्राणों का संचार सम्पूर्ण शरीर में वायु के रूप में फैलने लगती है जिसकारण जहा प्राणों की कमी होती है उस-उस जगह  प्राण भरने लगते है एवं हमारा शरीर पहले से कही अधिक सुंदर एवं स्वस्थ होने लगता है.जिसके परिणाम स्वरुप हमारी नाडिया शुद्ध होती चली जाती है.
अब हम प्राणायाम के कुछ मुख्य प्रकार की बाते करते है जिसे व्यक्ति को नियमित रूप से अवश्य करनी ही चाहिए.


१ -भस्त्रिका प्राणायाम-

इस  प्राणायाम में तीव्र वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर लेते है और अशुद्ध को बहार  निकालते है जिससे एक आवाज सी निकलती  है जो धौकनी जैसी होती है.यह प्राणायाम अति महत्वपूर्ण है इससे शरीरगत  जितने भी toxins इकट्ठा हुए है एवं जो जहर अल्प मात्र में हमारे शारीर में मौजूद होती है उससे यह प्राणायाम तेजी से निकालती  है .

विधि- आप सुखपूर्वक किसी भी आसन पर बैठ जाए एवं गर्दन ,रीड की हड्डी को सीधा करते हुए शारीर  और मन को स्थिर एवं शांत करते हुए आखे बंद करके तेज गति से श्वासों को अंदर और तेज गति से बाहर निकाले .इस प्राणायाम से नाडी स्थल पर दबाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप हमारे चक्र परिष्कृत होते चले जाते है .नए नए में आप इसे  धीरे धीरे ५ मिनट तक करे फिर बढ़ाते बढ़ाते आप १०-१५ या उससे ज्यादा अपनी  सामर्थ्यानुसार बढ़ाये.जब अभ्यास बढ़ जाए तो आप १ सेकंड में २ बार लेने और छोड़ने की क्रिया करे. इस प्राणायाम को उच्च रक्तचाप ,ह्रदय रोगी,दम्मा,टीबी ,या ह्रदय रोगी एवं गर्भवती महिलाये न करे.


२=कपालभाती –षट्कर्म में इस प्राणायाम का पंचम स्थान माना गया है .षट्कर्म के अंतर्गत धौती,बस्ती ,नेति,नौली ,कपालभाती एवं छठा त्राटक आता है .कपालभाती एवं त्राटक को इनमे अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है जो हमें योग से मिलाप करवाता है .किन्तु गृहस्थो के लिए सुलभ तो भस्त्रिका ,कपालभाती एवं अनुलोम विलोम ही होगी.त्राटक एक पूर्ण विज्ञानं है जिसपर पूर्ण अनुभव के साथ प्रैक्टिकल  भी आपलोगों के मध्य  भविष्य में अवश्य  रखूँगा.जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है कपाल अर्थात मस्तिस्क का अग्र भाग एवं भाति अर्थात ज्योति इसकारण इस प्राणायाम को संजीवनी प्राणायाम भी कहते है .

विधि- आप आसन में सीधे बैठ जाए अब श्वासों को बाहर छोड़ने की क्रिया करे श्वासों को बाहर  छोड़ते समय आपका पेट अन्दर की ओर जायेगा .इसतरह करने पर स्वास स्वतः ही अन्दर आ जाती है जिसके कारन आपको लेने की आवश्यकता नही पड़ती.हलाकि भस्त्रिका एवं कपालभाती में ज्यादा अंतर नही है क्युकी भस्त्रिका में श्वास लेना और छोड़ना तेजी से करते है किन्तु कपालभाती में केवल हम श्वासों को  छोड़ने पर ही ध्यान देते है . इस प्राणायाम के द्वारा हमारे चेहरे की झाइया एवं आखो के निचे काले धब्बे साफ़ होने लगते है .शरीर में अतिरिक्त वसा हटने लगती है एवं हमारे मन के बुरे विचारों को दूर करती है .इसे भी धीरे धीरे ५ मिनट से लेकर १५ मिनट तक अभ्यास बढ़ाये आप इसे सुबह शाम भी कर सकते है .इसके अभ्यास से खोपड़ी ,स्वास प्रणाली और नासिका को शुद्ध करता है एवं कफ रोग को समूल दूर करता है .फेफड़े में अधिक मात्रा में प्राणवायु जाने लगते है जिससे समस्त शरीर में प्राणवायु सही तरीके से संचालित होने लग जाती है .




३ –अनुलोम विलोम /नाड़ी शोधन प्राणायाम-
वायु१०प्रकारकीहोतीहैप्राण,अपान,व्यान,उदान,सामान,नाग,कूर्म,कृकल,देवदत्त एवं धनञ्जय.जब बात प्राणायाम की हो रही है तो इन  वायु के रहने के स्थान भी बतला दे.प्राण का स्थान शिर में है ,उदान का कंठ ,नाभि,नासिका एवं गला है.व्यान का प्रधान स्थान ह्रदय है यही से इसका सभी अंगो में संचार होता है.समान का स्थान अन्याशय के समीप अमाशय से गुदा तक जाती है .अन्न को पाचन ,ग्रहण व फेकना इनका कार्य है .अपान का स्थान गुदा है .कंठ,मुत्रेंद्रिय ,जांघ एवं योनी के पास.वीर्य मासिक धर्म ,मलमूत्र,व गर्भ को बाहर निकालने  का कार्य इनका है .यह एक पूर्ण विज्ञान है जिसके विषय में बहुत बाते हो सकती है किन्तु वह विषय लम्बा हो जायेगा.हमें क्रियात्मक पक्च की ओर ध्यान देनी है .इस प्राणायाम के तो सैकड़ो लाभ है किन्तु जो मुख्य लाभ वोह है की यह 72कड़ोड़ 72लाख  10हजार  210 नाडियो की शुद्धि करता है .शुद्ध वायु हमारे सम्पूर्ण शारीर के रोम रोम में प्रसारित हो जाती है जिसके कारन कैसा भी रोग हो  नियमित अभ्यास एवं दिनचर्या से दूर की जा सकती है .मानव शरीर में मुख्य १७ नाडिया है जो है इडा,पिंगला,शुशुमना ,गांधारी,हस्तिजिह्वा,कुहू, सरस्वती ,पूषा ,शंखिनी,पयाश्विनी ,वारुनी,अलम्बुषा,विश्वोदारा,यशश्विनी,वज्र,चित्रा एवं ब्रह्म.इनमे भी मुख्य इडा,पिंगला एवं शुशुमना मुख्य है.अन्य नाडिया शुशुमना पर ही निर्भर रहती है यह तो एक गूढ़ विषय है  की किस प्रकार प्राणायाम एवं योग तंत्र द्वारा हम शुशुमना नाड़ी को जागृत करे.हा किन्तु इस नाड़ी के जाग्रति होते ही आपमें समाधी तक जाने की अवशता आ सकती है एवं ध्यान गहरा लगने लगेगा इसके साथ ही साथ आपको कुण्डलिनी के नियमित अभ्यास से द्विगुणित सफलता हासिल कर लेंगे.शिव संहिता के अनुसार इडा और पिंगला नाडिया गुदा के पास से होती हुई कुण्डलिनी के मेरुदंड को एक पाशर्व से पाशर्व तक लपेटे हुए शुशुमना से मिलकर त्रिवेणी बनाकर सर में होते हुई माथे के भ्रूमध्य स्थान में शुशुमना से होकर दो स्थानों में एक दाहिना और बाए भाग में जाकर समाप्त हो जाती है .इसकी कई विधिया है जिनमे मंत्र व तंत्र का सहयोग लेकर नाभि में दबाव बनाकर अग्नि बीज "रं" का जाप कर श्वासों  को साधते है .

विधि –आप किसी भी आसन में बैठ जाए अब रीढ़ की हड्डी सीधी एवं गर्दन सीधी रहे अब ॐ का उच्चारण ३ बार करके शांत हो जाए .ज्ञान मुद्रा में दाहिने हाथ के अंगूठे से दाहिने नाक को बंद करे एवं बाए नाक से स्वास ले पूरा ,दूसरी ऊँगली छोड़ दे .अब शेष बची ऊँगली से बायीं को बंद करे अब दूसरी ऊँगली से जितनी देर हो सके रुके फिर दाहिने से स्वास धीरे धीरे निकाल  दे.इसका अनुपात धीरे धीरे बढ़ाते जाना है प्रारंभ में ५ मिनट से बढाकर ३० मिनट तक या १ घंटे तक का भी अभ्यास किया जा सकता है .इसे आप सरल तरीके से करे या मन में गायत्री मंत्र का जाप करते हुए भी कर सकते है .श्वासों को लेते समय पूरा श्वास नाभि तक लेने की कोशिश करे.इससे प्राणवायु ज्यादा से ज्यादा अन्दर तक आ सकेगी एवं नाभि पर दबाव बन सकेगा जिससे आपकी कुण्डलिनी शक्ति पर भी दबाव बनना प्रारंभ हो जाएगी एवं यह शक्ति शीघ्रता से खुलना प्रारंभ करेगी.जबतक हमारे शरीर की नाडियो से मल का निष्कासन नही होगा तबतक कुण्डलिनी जाग्रति में संदेह ही  रहेगा.इस प्राणायाम के अभ्यास से नाभि के पास जो सूर्य चक्र है वह अधिक से अधिक उद्दीप्त होगा जिसके फलस्वरूप हमारे जीवन में एक क्रन्तिकारी परिवर्तन होना प्रारंभ हो जायेगा.इस प्राणायाम से मुझे बहुत लाभ मिला है कभी कभी तो ज्यादा देर तक अभ्यास करने एवं योग तांत्रिक प्रक्रिया करते करते ही अनेको प्रकार के गंध अनुभव होने लगते है और वह गंध तो कभी कभी किसी और को भी महसूस होने  लगती थी .यह कोई अस्चर्य की बात नही है ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है जरुरत है कार्य के प्रति लग्न और पूर्ण ज्ञान की .इस प्राणायाम के कई लाभ है एवं कई पहलु है जिस प्रकार कपालभाती के है .प्राणायाम को करने के कई तरीके है जिसे सामान्य गृहस्थ व्यक्ति भी कर सकते है .

योग एवं प्राणायाम से हमारी शारीरिक शुद्धि  होती है एवं अध्यात्म में जाने का रास्ता सरल होता है किन्तु यदि योग के साथ मंत्र एवं तंत्र का साहचर्य प्राप्त कर लिया  जाए तो परिणाम ४ गुना तीव्रता से प्राप्त होगी .आगे इस विषय पर अवश्य कुछ रहस्य उजागर करने  की कोशिश करूँगा.

अगले विषय में प्राणमय कोष एवं उनके विविध चेतन अवस्था के विषय में चर्चा करेंगे.


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