Friday, 3 July 2015

विवेचनात्मक तथ्य







गुरु अपने आप में ज्ञान स्वरुप है .आध्यात्मिकता की चरम सीमा है .शिव गुरु स्वरुप निराकार परब्रह्म परमात्मा है .शिव को पूर्ण रूप से आत्मसात करने की क्रिया ही समस्त ज्ञान विज्ञानं को अपने अन्दर आत्मसात करने की क्रिया है.जब योग की चरम सीमा  होती है जब आध्यात्मिकता में प्रवीणता मिलती है व जब चेतनाका स्तर रोम रोम में प्रवाहित होने लगती है तो  शिवत्व हमारे रुधिर में प्रवाहित होने लगती है    .साधना  अपने  आप को दिव्य बनाने की क्रिया है .साधना व तप से आत्मज्ञान का मार्ग प्रसश्त होता है एवं आत्मनियंत्रण की कला में पूर्ण सामंजस्यता आती है .बिना गुरु के साधना मार्ग के उच्च सोपान में पहुचना तो विस्मृत स्वप्न के सामान है .समय का चक्रव्यूह अपनी अबाध गति से चल रही है इसमें कोई हस्तचेप नही कर सकता .किन्तु एक योगी एक साधक चाहे तो अपनी  चेतना शक्ति को बढाकर काल को वशीभूत कर सकता है.उसे भूत भविष्य वर्तमान प्रभावित नही कर सकते है  .वह अपनी इच्छाशक्ति को चेतना से जोड़कर काल की यात्रा कर सकता है जिससे वह जरा व मृत्यु से कोषों दूर रहता है .यह ज्ञान सद्गुरु की प्राप्ति एवं शिव कृपा से होती है.

समाज में  अध्यात्म के नाम पर हो रहे कालेबजारी व सैकड़ो धर्म बाबाओ व तांत्रिको को देख कर ऐसा लग रहा है  जो केवल अपने निहित स्वार्थ व  धन के लिए ही उनका  इस छेत्र में पदार्पण हुआ है .इन सारी वस्तुस्थितियो को देखकर मन में एक ज्वाला सी भड़क उठती है.साधना की ऐसी दुर्दशा आज तक नही हुई थी जैसा आज देखने को मिल रहा है .साधना एक विज्ञानं है यह कोई अंधविश्वास नही .साधना के लिए न ही इतने सारे लम्बे चौड़े विधान की आवश्यकता है न ही ज्यादा उपकरण ही.हा एक कुशल मार्गदर्शक  होना अवश्य चाहिए .जीवन में इतनी यात्राए की साधना के कई आयामों को देखा तो पता चला की साधना क्या होती है.हमारा यह ब्लॉग विज्ञानं व तंत्र के वास्तविक तथ्यों  के बारे में सही तरीके से निरुपित करने के लिए बने गयी है .जिससे की समाज में हो रहे इन कतिपय पाखंडियो व साथ साथ अल्प ज्ञानियो से बचा जा सके.

साधना को पूर्ण मनोयोग व जो पूर्ण नियमावली के साथ दी गयी निर्दिष्ट समय में पूर्ण करना ही एक साधक का परम कर्तव्य है .हमारे कई वर्षों के अथक प्रयास व कड़ी मेहनत का नतीजा है जो आज गुरु द्वारा पूर्ण वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति हो सकी है.जिससे लोगो का भी भला हो सका है विषम परिश्तियो में भी .आज उस ज्ञान का उपभोग हमलोग एक यूनिट बनाकर एक छोटा सा लैब के माध्यम से कर रहे है व प्राचीन पाण्डुलिपि  व दुर्लभ जडीबुटी पर  नित्य नविन शोध कार्य करके उन आयामों को जानने की एक कोशिश है  .चाहे वह सम्मोहन विज्ञानं हो,तंत्रात्मक पद्धति,यन्त्र –मंत्र;परा-अपरा आवाहन विज्ञानं हो या तंत्रात्मक वनस्पति.हम सभी लोग का यही एक संकल्प  है की इस भारत भूमि की शक्ति का विश्व में परिचय करवाएंगे .इसके लिए प्रत्येक भारतवासी को एकरूप में जागृत व साधनामय होने की आवश्यकता है.अपनी शक्तिओ को पहचानने का एवं शक्ति को जागृत करने का अवसर आ गया है .हम उन सभी लोगो के साथ साथ उन नवयुवको का भी इस छेत्र में आवाहन करते है जो अपनी इच्छाशक्ति को पहचाने व एक सबल पुरुष हो जिससे  यह राष्ट्र गौरवान्वित हो.

!!शिवोहम शिवोहम !!

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