Friday, 4 September 2015

योग सूत्र



शिवाय ..

साधना पथ पर आगे बढ़ने पर हमें जिन जिन प्रक्रियाओ की आवश्यकता  अपने अभिस्ट की प्राप्ति के लिए होती है उनमे  मुख्य २ तरीके है एक है योग दूसरा तंत्र द्वारा .इसी प्रकार  योग का पूरक तंत्र है और तंत्र का पूरक भी योग.भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भी योग के विषय में गूढ़ ज्ञान प्रदान किया  था और उन्हें योग के पथ पर जाने के सुगम मार्गो का चयन करना सिखलाया था .योग केवल हठयोग ,ज्ञानयोग,लययोग ही नही अपितु मन हमारा जिस प्रकार से भी एकाग्र हो वह योग है .”योग्स्चित्त्वृत्ति निरोधः “ पतंजलि योग सूत्र है अर्थात चित्त को योग के किसी भी प्रकार के उपाय से रोकना ही योग है.योग शब्द का अर्थ होता है जोड़ना और दूसरा अर्थ है उपाय,महर्षि पतंजलि के अनुसार चित्त वृत्ति को रोक देना ही योग है .अद्वैत सिद्धांत के अनुसार जिस ज्ञान व क्रिया के द्वारा हमें परमात्मा के दर्शन  हो सके वही योग है.योग के अर्थ में माया को बंधन के रूप में लिया है किन्तु गृहस्थो के लिए इसे अपना कर्म मानकर आगे बढ़ते रहना  चाहिए.किन्तु योगिओ के लिए माया उनके चित्त वृत्ति को भटकने का कार्य करती है .इसपर हम कभी विशेष विवेचना करेंगे अभी हम महर्षि पतंजलि के विषय में वार्ता करेंगे.योग ज्ञान के विषय में वैसे तो पूर्ण निश्चित रूप से पता नही हो चल सका  है किन्तु आदि गुरु तो शिव है जिनके श्री मुख से कर्कोटक को मिला अर्थात महर्षि पतंजलि को मिला व इन्होने इस ज्ञान का प्रचार प्रसार मनुष्यों के कल्याण एवं परमात्मा प्राप्ति में सहायता के लिए बाटा.योग से धर्म एवं ज्ञान दोनों की रक्चा  होती है .एक बार आदि गुरु शिव ने पार्वतीजी से  योग के महत्व के विषय में बतलाते हुए कहा की हे परमेश्वरी !योग विहीन ज्ञान मुक्तिदायक नही हो सकता है .हे प्रिये !केवल ज्ञानवान,धर्मज्ञ ,जितेन्द्रिय व सद्विचार रखने से ही मुक्ति नही मिलती .मुक्ति के लिए देवताओ तक को योग करने पड़े थे.

योग की महिमा के विषय में जितना लिखा जाए शब्द कम है .किन्तु यदि योग से शक्ति प्राप्त हो गयी तो हम इस जीवन में अलौकिक से अलौकिक एवं असंभव से असंभव कार्य परिणत कर सकते है .हमारे पूर्व ऋषियो महार्षियो ने ही तो योगबल के द्वारा मन को स्थिर करके शारीर की अंतर्यात्रा प्रारंभ की जिनसे वे जान पाए की मानव शरीर में कहा क्या है .इन सब बातो को  गेहरियो से देख कर जानकार एवं अवलोकन कर मंत्र ,तंत्र,यन्त्र एवं योग रहस्यों का अनावरण किया एवं शोध द्वारा अनेक विधिया खोज निकाली जिनसे इस  शरीर को भी देव तुल्य बनाया जा सके  .हम प्रति दिन के कार्यो में परेशानी एवं दुखो से घिरे रहते है और अपने आप को अपने भाग्य को अपने पाप को कोसते  रहते है. किन्तु इनसब की बजाय यदि  वह उर्जा व शक्ति योग मार्ग पर व साधना पर लगा दे  तो उनका जीवन देवताओ की तरह सुगन्धित हो जायेगा.हमेशा स्मरण रखे पछताने से हमारा मस्तिस्क दिन प्रतिदिन कमजोर होता चला जाता है और इस प्रकार हमारा आत्मविश्वास कम होता चला जाता है ,जिसके परिणामस्वरूप हमारा जीवन नरक के सामान हो जाता है .स्मरण रखे हमारा यह शरीर  पंचभूतात्मक है एवं परमात्मा की तरफ से एक अनुपम भेट है हम इस शरीर से ही वह सब कुछ प्राप्त कर सकते है जो किसी और देह की प्राप्ति से ही  शायद मिल सके  .जो जीवन से चला गया उसे पाने के लिए दुगने उत्साह से हमें इसी शरीर की आवश्यकता होगी नाकि आप आत्महत्या करके इस शरीर का परित्याग कर दे.अपने आपको थोडा समय देना प्रतिदिन के समय से यह बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगी.
 योग की तरफ महर्षि पतंजलि का नाम  तो योग शाश्त्र में विश्व विख्यात है उनकी एक अनुपम लिखित भाष्य “पतंजलि योग सूत्र” हम सब मानव जाति के बिच एक अति मूल्यवान भेट है .इस ग्रन्थ में पूर्ण वैज्ञानिक ढंग से जिस प्रकार इन उपयोगी सूत्रों को पीड़ोया गया है वह सभी के बस की बात नही है .हमारा भारतीय विज्ञान आज बहुत आगे है एवं उसकी सराहना अवश्य होनी चाहिए किन्तु आज से हजारो वर्षो पूर्व उन ऋषियो मुणियो ने यह सब कुछ अपने अंतर ज्ञान के माध्यम से जान पहचान लिया था जिसे आज का विज्ञानं अबतक खोज बिन कर रहा है एवं कुछ को जान पाया है .
योग से शरीर में एक ऐसी रासायनिक क्रियाए होती है जिसके बल पर व्यक्ति दिर्घाऊ प्राप्त कर समस्त रोगों को दूर कर सकता है.यह ब्लॉग केवल लोगो  को उसके अपने ही  जीवन दर्शन पर आधारित इस भारत की धरा पर अवतरित हुए उन ऋषि महर्षियो के ज्ञान विज्ञानं के बारे में बेहद करीब से परिचय करवाना है जिसे वे अपने जीवन में ढाल सके.आज हमारा विज्ञानं भी इस बात पर  अस्चर्या करता है  की ऋषि मुणियो की ज्ञान की सराहना जितनी भी की जाए वह कम है क्युकी वे एक अति क्रियाशील एवं परावैज्ञानिक में बेहद ही नजदीकी से अन्वेषण व अनुशंधन करते थे .वैसे तो ऋषि मुणियो के कई उदाहरण इतिहास में उनके योगिक बल व साधनाओ पर इतिहास में मिल जाएँगी किन्तु उनमे से ही एक नाम है बोधिधार्मा .आज से हजारो वर्षो पूर्व  बोधिधर्मा नाम के प्रकांड व्यक्ति हुए थे जिन्होंने अपने ज्ञान के बल पर DNA की खोज कर ली थी एवं उसके गुणसूत्र के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली थी और अपने ज्ञान्चक्छु के द्वारा  डीएनए के संरचना को भी देख लिया था..उन्हें उस समय का दूसरा बुद्ध भी कहा जाता था.वे तंत्र मंत्र ,आयुर्वेद,हठयोग एवं साथ ही साथ सम्मोहन विज्ञानं में भी पूर्ण पारंगत थे .आज  भारत में बहुत ही कम लोग होंगे जो शायद उनके बारे में जानते होंगे और यह भी की वे kungfu aur marshal art ke जनक कहे जाते है .उन्होंने इस विज्ञानं को मानव जगत के बीच बाटने का निश्चय किया था जिससे वे चीन गये और इस विज्ञानं का बेहद जोड़ षोड से प्रचार प्रसार हुआ.और इस तरह यह विद्या वहा  प्रसिद्द होकर रह गयी और भारत में अल्प मात्रा में रह गयी .आज भी लोगो से पूछा जाये तो उनके बारे में शायद ही कोई जानते हो ,हा  चीन में तो उनके नाम का मंदिर भी है और किसी भी साधारण व्यक्ति से इनके बारे में पूछा जाए तो बता देगा और यह भी बता देंगे  की वे तो मास्टर धामु है एवं जिनका आगमन भारत से हुआ था  .खैर ऐसे कई लुप्त प्राय व्यक्ति हुए है जो शायद इतिहास के पन्नो में दबकर रह गये .
पातंजल योग दर्शन के अनुसार - योगश्चित्तवृत्त निरोधः (1/2) अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
योग के प्रकार -
मंत्रयोग-
'मंत्र' का समान्य अर्थ है- 'मननात् त्रायते इति मंत्रः'। मन को त्राय (पार कराने वाला) मंत्र ही है। मंत्र योग का सम्बन्ध मन से है, मन को इस प्रकार परिभाषित किया है- मनन इति मनः। जो मनन, चिन्तन करता है वही मन है। मन की चंचलता का निरोध मंत्र के द्वारा करना मंत्र योग है। मंत्र योग के बारे में योगतत्वोपनिषद में वर्णन इस प्रकार है-
योग सेवन्ते साधकाधमाः।
मंत्र से ध्वनि तरंगें पैदा होती है मंत्र शरीर और मन दोनों पर प्रभाव डालता है। मंत्र में साधक जप का प्रयोग करता है मंत्र जप में तीन घटकों का काफी महत्व है वे घटक-उच्चारण, लय व ताल हैं। तीनों का सही अनुपात मंत्र शक्ति को बढ़ा देता है। मंत्रजप मुख्यरूप से चार प्रकार से किया जाता है।
(1) वाचिक (2) मानसिक (3) उपांशु (4) अजपा ।
हठयोग -
साधक के चित्त् में जब चलते, फिरते,बैठते, सोते और भोजन करते समय हर समय ब्रहम का ध्यान रहे इसी को लययोग कहते हैं। योगत्वोपनिषद में इस प्रकार वर्णन है-
गच्छस्तिष्ठन स्वपन भुंजन् ध्यायेन्त्रिष्कलमीश्वरम् स एव लययोगः स्यात (22-23)

राजयोग-
राजयोग सभी योगों का राजा कहलाया जाता है क्योंकि इसमें प्रत्येक प्रकार के योग की कुछ न कुछ समामिग्री अवश्य मिल जाती है। राजयोग महर्षि पतंजलि द्वारा रचित अष्टांग योग का वर्णन आता है। राजयोग का विषय चित्तवृत्तियों का निरोध करना है।१९वि शताब्दी में विवेकनद ने राजयोग पर प्रकाश डाला एवं उन्होंने राजयोग से सम्बंधित एक पुस्तक भी लिखी .वे राजयोग के बहुत अच्छे साधक थे जिनके कुण्डलिनी शक्ति की ३ चक्र जागृत थे .राजयोग को सभी योगो में प्रमुख स्थान प्राप्त की है वह इसलिए की यह सभी योगो का मिश्रित योग है .
राजयोग के अन्तर्गत महिर्ष पतंजलि ने अष्टांग को इस प्रकार बताया है-
यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टाङ्गानि।
योग के आठ अंगों में प्रथम पाँच बहिरंग तथा अन्य तीन अन्तरंग में आते हैं।
उपर्युक्त चार पकार के अतिरिक्त गीता में दो प्रकार के योगों का वर्णन मिलता है-
पतांजलि का लेखन 'अष्टांग योग"-
१ यम २ नियम ३ आसन ४ प्राणायाम ५ प्रत्याहार ६ धारणा ७ ध्यान ८ समाधि
भगवद गीता में कर्म योग,भक्ति योग एवं ज्ञान योग के विषय में विस्तार से योगी श्री कृष्णा ने अर्जुन को पूर्ण ज्ञान दिया.
हठयोग-
हठयोग पतांजलि के राज योग से काफी अलग है जो सत्कर्म पर केन्द्रित है, भौतिक शरीर की शुद्धि ही मन की, प्राण की और विशिष्ट ऊर्जा की शुद्धि लती है।
हठयोग योग, योग की एक विशेष प्रणाली है जिसे 15वीं सदी के भारत में हठ योग प्रदीपिका के संकलक.
योगसूत्र के कई ग्रन्थ लिखे गये किन्तु पतंजलि के योग सूत्र का रचनाकाल में अनुमान नही लगाया जा सकता है .कुछ और विद्वान् हुए जैसे महर्षि वेदव्यास जिन्होंने “योग्भास्य”नामक  पुस्तक को लिखा.”तत्ववैशार्दी” वाचस्पति मिश्र ने लिखा,”भोज्वृत्ति” राजभोज,” गोरक्षशतक” गुरु गोरखनाथ ने, “योगवार्तिक” एवं योग सारसंग्रह  विज्ञानंभिक्छु ,”हठयोग प्रदिकिपिका” स्वमिस्वत्मरम, “सूत्रवृत्ति” गणेशभावा, “योगसूत्रवृत्ति” नागेश्भात्त,रामानंद यति , “सूत्रार्थप्रबोधिनी” रामायण तीर्थ ,”घेरंड संहिता” घेरंड मुनि.]

John Denninger जो हावर्ड मेडिकल स्कूल में psychiatrist है ५ सालो से योग पर शोध कर रहे है उन्होंने देखा की इस प्रकार के प्राचीन प्रैक्टिस से हमारे मस्तिस्क और जिन्स को एक सिलसिलेवार ढंग से प्रभावित करता है.उन्होंने यह भी देखा की अनुलोम विलोम या उज्जायी प्राणायाम से मस्तिस्क के जिन्स में कुछ करिये हो रही है जो प्राणायाम के ज्यादा से ज्यादा समय देने से बेहद क्रियाशील होते है .denninger  एक मत से स्वीकार किया की एक ऐसी biological changes हो रही है जो केवल मस्तिस्क के स्नायु तंत्र को ही नही बल्कि सम्पूर्ण शरीर की  कार्यप्रणाली पर प्रभाव कर रही है .क्युकी वेह मस्तिस्क से सम्बंधित डॉक्टर थे.इसकारण वे इस बात पर भी शोध कर रहे थे की depression से किस प्रकार निजात पाई जा सकती है इसकारण उन्होंने १९६० के दशक में हावर्ड प्रोफेसर herbert bension से संपर्क किया जिससे की वे साथ में मिलकर इस पथ पर और शोध हो सके और उन्होंने यह नतीजा कुछ समय बाद निकला की  दवा के साथ साथ  योग व ध्यान मस्तिस्क की कार्यप्रणाली की त्वरित गति से एक्टिव करने लग जाती है .और विशेषकर तो depression में तो उन्हें काफी रोगीओ पर शोध किया परिणाम अस्चार्यजनक निकले.केवल हावर्ड यूनिवर्सिटी ही एकमात्र स्थान नही है जहा केवल शोध योग पर होता रहा और भी ऐसी कई है जैसे यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया जो लोस angeles में है और नोबेल प्राइज विनर elizabeth blackburn ने पाया की प्रतिदिन १२ मिनट के योग प्राणायाम जो ८ हफ्तों तक किया और पाया की telemorse activity को ४३ प्रतिशत तक बढ़ा दिया है .sanfrancisco ,blackburn ऑफ़ the university ऑफ़ california carol ग्रेइदर ने  शोध किया तो पाया की इससे एक प्रकार का immortality enzyme बंनने लग जाती है जो हमारे उम्र को बढ़ने से धीरे धीरे रोकने लग जाती है .

 

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